रिपोर्ट -एकरार खान


स्थानीय सूत्रों की मानें तो हंसराजपुर चौकी के नाक के नीचे खुलेआम अवैध तरीके से देशी शराब बेची जा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब कुछ न तो छुप-छुपाकर हो रहा है और न ही गुप्त स्थानों पर, बल्कि रामलीला मैदान जैसे भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक स्थल पर धड़ल्ले से यह कारोबार चल रहा है।
सूत्रों ने खुलासा किया है कि जिस देशी शराब की एक शीशी का सरकारी मूल्य 70 रुपए निर्धारित है, वहीं मौके पर इसे 125 रुपए तक में बेचा जा रहा है। यानी शासन द्वारा तय कीमत से लगभग दोगुना वसूला जा रहा है। इस मनमाने दाम पर बिक्री से जहां शराब माफियाओं की जेबें भर रही हैं, वहीं गरीब और मध्यमवर्गीय लोग महंगे दाम पर शराब खरीदने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि दशहरा और गांधी जयंती जैसे दिनों में जहां सरकार नशा मुक्ति, स्वच्छ समाज और सत्य-अहिंसा के संदेश देने का दावा करती है, वहीं वास्तविकता इसके ठीक विपरीत दिखाई देती है। शराब माफियाओं की सक्रियता और प्रशासन की चुप्पी लोगों में सवाल खड़े कर रही है।
गांव के कई नागरिकों का आरोप है कि यह कारोबार बिना प्रशासनिक संरक्षण के संभव ही नहीं है। उनका कहना है कि चौकी के ठीक पास और सार्वजनिक मैदान में शराब बिकना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं पुलिस की शह पर ही यह सब हो रहा है। लोगों का आरोप है कि शिकायत करने के बावजूद भी कार्रवाई नहीं होती, बल्कि माफियाओं के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं।
जानकारों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं न सिर्फ शासन की छवि धूमिल करती हैं, बल्कि त्योहारों की पवित्रता को भी आहत करती हैं। दशहरा जहां बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और गांधी जयंती सत्य-अहिंसा के आदर्शों का प्रतीक मानी जाती है, वहीं इन दिनों में शराब का खुलेआम बिकना समाज के लिए एक गहरी चिंता का विषय है।
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन और आबकारी विभाग से मांग की है कि इस मामले की गंभीरता से जांच की जाए और शराब माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। साथ ही, चौकी पुलिस की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।
सवाल यह है कि जब पुलिस चौकी के नाक के नीचे ही अवैध शराब का कारोबार चल रहा है तो शासन-प्रशासन की निगरानी और सख्ती के दावे कितने खोखले हैं?