रिपोर्ट -एकरार खान


बताया जा रहा है कि वे चिकित्सालय में कम ही समय देते हैं और उनकी उपस्थिति अक्सर नहीं मिलती।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मऊ जिले के भीटी चौराहे के पास शेखर क्लिनिक के नाम से उनका निजी क्लिनिक संचालित है, जहां वे नियमित रूप से प्रैक्टिस करते देखे जाते हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि जब सरकारी चिकित्सालयों में डॉक्टर की सेवाएं अपेक्षित हैं, तब मरीजों को आखिर सही इलाज कौन देगा।
बहादुरगंज आयुर्वेद चिकित्सालय की स्थिति तो और भी चिंताजनक बताई जा रही है। आरोप है कि यहां मरीजों को दवा देने का काम चौथी श्रेणी (फोर्थ ग्रेड) के कर्मचारियों के भरोसे छोड़ा गया है। जबकि नियमों के अनुसार चिकित्सालय में नियुक्त डॉक्टर, फार्मासिस्ट और सफाईकर्मी को अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए। ग्रामीणों और मरीजों का कहना है कि डॉक्टर की अनुपस्थिति में दवा वितरण कराना विभाग की गंभीर लापरवाही है और यह सीधे तौर पर मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है।
ग्रामवासियों का आरोप है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। डॉक्टर और फार्मासिस्ट की मौजूदगी के बावजूद मरीजों को सही परामर्श और चिकित्सा नहीं मिल पा रही। कई बार मरीजों को निराश होकर निजी क्लिनिक या बाहर का रुख करना पड़ता है।
इस पूरे मामले पर जब डॉ. जयंत कुमार से बातचीत की गई तो उन्होंने लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना है कि वह अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं और निजी क्लिनिक या लापरवाही जैसी बातों में कोई सच्चाई नहीं है।
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इन गंभीर आरोपों पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या वास्तव में जांच कर जिम्मेदारों पर कार्यवाही होगी, या फिर यह मामला भी महज चर्चा तक ही सीमित रह जाएगा। यदि समय रहते इस पर ठोस कदम नहीं उठाया गया तो मरीजों के साथ इसी तरह खिलवाड़ होता रहेगा और आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवाओं पर जनता का भरोसा डगमगा सकता है।