भालूमाड़ा काली मंदिर घोटाला: आस्था की लूट पर SECL प्रबंधन और यूनियनों की संगठित चुप्पी संतोष चौरसिया की कलम से जमुना कोतमा भालूमाड़ा, 7 अगस्त 2025 भालूमाड़ा काली मंदिर में 18 लाख रुपये के सौंदर्यीकरण के नाम पर हुए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने के बाद मंदिर परिसर में पसरा सन्नाटा किसी श्रद्धा की शांति का प्रतीक नहीं, बल्कि व्यवस्था के गहरे सड़ांध की गूंज है यह सन्नाटा उस संगठित अपराध पर डाले गए कंबल की तरह है, जिसके नीचे आस्था को जेसीबी से रौंदा गया, और ईमानदारी को सीमेंट में मिला दिया गया सबसे भयावह यह है कि इस लूट के खुलासे के बावजूद न तो एसईसीएल जमुना-कोतमा प्रबंधन की आंखें खुलीं और न ही श्रम संघों के मुंह एक ओर प्रबंधन बेशर्मी से चुप है, तो दूसरी ओर मजदूरों के तथाकथित मसीहा बने यूनियन नेता किसी बिल में घुसे बैठे हैं क्या यह चुप्पी सिर्फ डर है या साझा भागीदारी का संकेत? प्रबंधन मस्त, यूनियनें पस्त, श्रमिक त्रस्त जिन अधिकारियों को श्रमिकों की खून-पसीने से कमाई गई तनख्वाह मिलती है, वही आज उनकी आस्था के मंदिर में हुए भ्रष्टाचार पर आंखें मूंदे बैठे हैं सिविल विभाग के एसओ पी.के. द्विवेदी और ओवरसीयर अमित उपाध्याय इस घोटाले के केंद्र में हैं — जिन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी कुर्सी का सौदा ठेकेदार की बोली पर कर लिया लेकिन सबसे बड़ा धोखा वे यूनियनें दे रही हैं, जो सालों से मजदूरों से चंदे के नाम पर धन वसूलती आई हैं आज जब उनकी आस्था के प्रतीक मंदिर में लूट का घिनौना खेल खेला जा रहा है, तब ये सभी ‘नेता’ गूंगे दर्शक बन गए हैं क्या इन्हें अब सिर्फ बोनस और प्रमोशन की दलाली से मतलब है? क्या मजदूरों के विश्वास और उनके पैसों की बर्बादी इनके लिए कोई मुद्दा नहीं है? घोटाला नहीं, आस्था पर सर्जिकल स्ट्राइक इस पूरे मामले को केवल “निर्माण में गड़बड़ी” कहकर छोड़ा नहीं जा सकता — भालूमाड़ा काली मंदिर में 18 लाख की लागत से हुआ सौंदर्यीकरण असल में भ्रष्टाचार का खूबसूरत मुखौटा था, जिसके पीछे छिपी थी रिश्तेदारी की खुली लूट और संवेदना की हत्या ठेका मिला रवि तिवारी को, लेकिन साइट पर नज़र आए उनके साले शारदा मिश्रा — यह ठेका प्रक्रिया नहीं, पारिवारिक मेहंदी की मंडली थी, जिसमें आस्था की जमीन पर घोटाले का फेरा रचा गया परिक्रमा का चबूतरा नया-नवेला था, लेकिन हवा के हल्के झोंके से ऐसे बिखर गया जैसे सीमेंट की जगह अफसरों की बेशर्मी और ठेकेदारों की लालच घोली गई हो और जो हरियाली दिखाई गई, उसका सच और भी शर्मनाक है — पौधों को मिट्टी नहीं मिली, उन्हें रोपा गया ईंटों की दरारों में, पत्थरों के टुकड़ों पर, मलबे की कब्र में यह पौधरोपण नहीं, योजनाबद्ध पौधहत्या है — एक ऐसी हरियाली जो सिर्फ कैमरे के फ्लैश में ज़िंदा थी और हकीकत में दम तोड़ चुकी थी छत से पानी टपका तो नई छत सुधारने की जगह पुरानी टीन ठोंक दी गई — यह कोई मरम्मत नहीं, भ्रष्टाचार पर मढ़ी गई टीन की चादर थी यह सब सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि आस्था पर घात, भावनाओं की कब्र और सिस्टम की खुली चीरफाड़ है — जिसमें ईंट-पत्थर भी अब चिल्ला-चिल्ला कर पूछ रहे हैं: “हमें किस गुनाह की सज़ा मिली?” अब सिर्फ जांच नहीं, जवाबदेही चाहिए ठेकेदार का यह बयान कि “अभी तो सिर्फ 50% भुगतान हुआ है,” अपने आप में एक अघोषित कबूलनामा है क्या इसका अर्थ यह निकाला जाए कि अगर 100% पैसा मिल जाता, तो मंदिर की नींव में रेत भर दी जाती? और जब अधिकारी यह कहते हैं कि “एस्टीमेट घर पर है,” तो यह स्पष्ट होता है कि ये सिस्टम को अपनी व्यक्तिगत डायरी समझ बैठे हैं यह चेतावनी है — अंतिम मौका भी एसईसीएल के वरिष्ठ प्रबंधन क्षेत्र के लोकप्रिय महाप्रबंधक प्रभाकर राम त्रिपाठी के पास अब भी मौका है — यदि वे इस प्रकरण में पी.के. द्विवेदी और अमित उपाध्याय जैसे अधिकारियों पर तत्काल निलंबन और स्वतंत्र, उच्च स्तरीय जांच की घोषणा नहीं करते, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह चुप्पी मात्र सहमति नहीं, साझेदारी की स्वीकृति है और लोकप्रिय महाप्रबंधक प्रभाकर राम त्रिपाठी द्वारा अगर जांच कराई जाती है तो कई चौंकाने वाले तत्व सामने आएंगे मंदिर नहीं, भ्रष्ट तंत्र का स्मारक बनता भालूमाड़ा यह अब सिर्फ एक मंदिर के निर्माण का मामला नहीं रह गया है यह उस सड़े हुए ढांचे की पहचान है, जिसमें आस्था, ईमानदारी और श्रमिकों का विश्वास — सबकुछ टेंडर और कमीशन के बीच कुचला जा रहा है यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो भालूमाड़ा का यह काली मंदिर श्रद्धा का केंद्र नहीं, भ्रष्टाचार का स्मारक बन जाएगा — एक ऐसा प्रतीक जहां भगवान भी ठेके पर बिक जाते हैं, और मजदूरों की आस्था, अधिकारियों की फाइलों में दफन हो जाती है इनका कहना है हां ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता अभियान कार्य जा रहा था लेकिन जब हमें पता चला तो हमने जाकर रोका है और उसको फटकार लगाइए और कहा है कि आप काम सही करिए तो वह मिट्टी डालकर पौधा लगा रहा है रही बात पुराने सेट की तो हम लोग एस्टीमेट में लेना भूल गए थे लेकिन उसे भी लेकर जल्द ही सुधर जाएगा अमित उपाध्याय ओवरसीयर कोतमा गोविंद क्षेत्र ठेकेदार जब तक पूरा सही काम नहीं करेगा तब तक उसका भुगतान नहीं किया जाएगा हमने उसे चिट्ठी जारी किया है पीके द्विवेदी इस ओ सिविल एसईसीएल जमुना कोतमा क्षेत्र मुझे तो जानकारी भी नहीं है कि कहां पर काली मंदिर में काम हो रहा है और कौन ठेकेदार काम कर रहा है लेकिन अगर काम सही नहीं कर रहा है तो मैं स्वयं जाऊंगा और उसकी जांच करुंगा और इसकी लिखित शिकायत महाप्रबंधक से करके सही काम कराया जाएगा रोशन उपाध्याय महामंत्री भारतीय मजदूर संघ बीएमएस यह काम बिलों में लिया गया है बताइए कहां पर काम गड़बड़ी है तो उसे हम सुधारे रवि तिवारी सिविल कांट्रेक्टर काली मंदिर जमुना कोतमा क्षेत्रसंतोष चौरसिया की कलम से




जमुना कोतमा भालूमाड़ा, 7 अगस्त 2025
भालूमाड़ा काली मंदिर में 18 लाख रुपये के सौंदर्यीकरण के नाम पर हुए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने के बाद मंदिर परिसर में पसरा सन्नाटा किसी श्रद्धा की शांति का प्रतीक नहीं, बल्कि व्यवस्था के गहरे सड़ांध की गूंज है यह सन्नाटा उस संगठित अपराध पर डाले गए कंबल की तरह है, जिसके नीचे आस्था को जेसीबी से रौंदा गया, और ईमानदारी को सीमेंट में मिला दिया गया
सबसे भयावह यह है कि इस लूट के खुलासे के बावजूद न तो एसईसीएल जमुना-कोतमा प्रबंधन की आंखें खुलीं और न ही श्रम संघों के मुंह एक ओर प्रबंधन बेशर्मी से चुप है, तो दूसरी ओर मजदूरों के तथाकथित मसीहा बने यूनियन नेता किसी बिल में घुसे बैठे हैं क्या यह चुप्पी सिर्फ डर है या साझा भागीदारी का संकेत?
प्रबंधन मस्त, यूनियनें पस्त, श्रमिक त्रस्त
जिन अधिकारियों को श्रमिकों की खून-पसीने से कमाई गई तनख्वाह मिलती है, वही आज उनकी आस्था के मंदिर में हुए भ्रष्टाचार पर आंखें मूंदे बैठे हैं सिविल विभाग के एसओ पी.के. द्विवेदी और ओवरसीयर अमित उपाध्याय इस घोटाले के केंद्र में हैं — जिन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी कुर्सी का सौदा ठेकेदार की बोली पर कर लिया
लेकिन सबसे बड़ा धोखा वे यूनियनें दे रही हैं, जो सालों से मजदूरों से चंदे के नाम पर धन वसूलती आई हैं आज जब उनकी आस्था के प्रतीक मंदिर में लूट का घिनौना खेल खेला जा रहा है, तब ये सभी ‘नेता’ गूंगे दर्शक बन गए हैं क्या इन्हें अब सिर्फ बोनस और प्रमोशन की दलाली से मतलब है? क्या मजदूरों के विश्वास और उनके पैसों की बर्बादी इनके लिए कोई मुद्दा नहीं है?
घोटाला नहीं, आस्था पर सर्जिकल स्ट्राइक
इस पूरे मामले को केवल “निर्माण में गड़बड़ी” कहकर छोड़ा नहीं जा सकता — भालूमाड़ा काली मंदिर में 18 लाख की लागत से हुआ सौंदर्यीकरण असल में भ्रष्टाचार का खूबसूरत मुखौटा था, जिसके पीछे छिपी थी रिश्तेदारी की खुली लूट और संवेदना की हत्या ठेका मिला रवि तिवारी को, लेकिन साइट पर नज़र आए उनके साले शारदा मिश्रा — यह ठेका प्रक्रिया नहीं, पारिवारिक मेहंदी की मंडली थी, जिसमें आस्था की जमीन पर घोटाले का फेरा रचा गया परिक्रमा का चबूतरा नया-नवेला था, लेकिन हवा के हल्के झोंके से ऐसे बिखर गया जैसे सीमेंट की जगह अफसरों की बेशर्मी और ठेकेदारों की लालच घोली गई हो और जो हरियाली दिखाई गई, उसका सच और भी शर्मनाक है — पौधों को मिट्टी नहीं मिली, उन्हें रोपा गया ईंटों की दरारों में, पत्थरों के टुकड़ों पर, मलबे की कब्र में यह पौधरोपण नहीं, योजनाबद्ध पौधहत्या है — एक ऐसी हरियाली जो सिर्फ कैमरे के फ्लैश में ज़िंदा थी और हकीकत में दम तोड़ चुकी थी छत से पानी टपका तो नई छत सुधारने की जगह पुरानी टीन ठोंक दी गई — यह कोई मरम्मत नहीं, भ्रष्टाचार पर मढ़ी गई टीन की चादर थी यह सब सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि आस्था पर घात, भावनाओं की कब्र और सिस्टम की खुली चीरफाड़ है — जिसमें ईंट-पत्थर भी अब चिल्ला-चिल्ला कर पूछ रहे हैं: “हमें किस गुनाह की सज़ा मिली?”
अब सिर्फ जांच नहीं, जवाबदेही चाहिए
ठेकेदार का यह बयान कि “अभी तो सिर्फ 50% भुगतान हुआ है,” अपने आप में एक अघोषित कबूलनामा है क्या इसका अर्थ यह निकाला जाए कि अगर 100% पैसा मिल जाता, तो मंदिर की नींव में रेत भर दी जाती? और जब अधिकारी यह कहते हैं कि “एस्टीमेट घर पर है,” तो यह स्पष्ट होता है कि ये सिस्टम को अपनी व्यक्तिगत डायरी समझ बैठे हैं
यह चेतावनी है — अंतिम मौका भी
एसईसीएल के वरिष्ठ प्रबंधन क्षेत्र के लोकप्रिय महाप्रबंधक प्रभाकर राम त्रिपाठी के पास अब भी मौका है — यदि वे इस प्रकरण में पी.के. द्विवेदी और अमित उपाध्याय जैसे अधिकारियों पर तत्काल निलंबन और स्वतंत्र, उच्च स्तरीय जांच की घोषणा नहीं करते, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह चुप्पी मात्र सहमति नहीं, साझेदारी की स्वीकृति है और लोकप्रिय महाप्रबंधक प्रभाकर राम त्रिपाठी द्वारा अगर जांच कराई जाती है तो कई चौंकाने वाले तत्व सामने आएंगे
मंदिर नहीं, भ्रष्ट तंत्र का स्मारक बनता भालूमाड़ा
यह अब सिर्फ एक मंदिर के निर्माण का मामला नहीं रह गया है यह उस सड़े हुए ढांचे की पहचान है, जिसमें आस्था, ईमानदारी और श्रमिकों का विश्वास — सबकुछ टेंडर और कमीशन के बीच कुचला जा रहा है
यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो भालूमाड़ा का यह काली मंदिर श्रद्धा का केंद्र नहीं, भ्रष्टाचार का स्मारक बन जाएगा — एक ऐसा प्रतीक जहां भगवान भी ठेके पर बिक जाते हैं, और मजदूरों की आस्था, अधिकारियों की फाइलों में दफन हो जाती है
इनका कहना है
हां ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता अभियान कार्य जा रहा था लेकिन जब हमें पता चला तो हमने जाकर रोका है और उसको फटकार लगाइए और कहा है कि आप काम सही करिए तो वह मिट्टी डालकर पौधा लगा रहा है रही बात पुराने सेट की तो हम लोग एस्टीमेट में लेना भूल गए थे लेकिन उसे भी लेकर जल्द ही सुधर जाएगा
अमित उपाध्याय ओवरसीयर कोतमा गोविंद क्षेत्र
ठेकेदार जब तक पूरा सही काम नहीं करेगा तब तक उसका भुगतान नहीं किया जाएगा हमने उसे चिट्ठी जारी किया है
पीके द्विवेदी
इस ओ सिविल एसईसीएल जमुना कोतमा क्षेत्र
मुझे तो जानकारी भी नहीं है कि कहां पर काली मंदिर में काम हो रहा है और कौन ठेकेदार काम कर रहा है लेकिन अगर काम सही नहीं कर रहा है तो मैं स्वयं जाऊंगा और उसकी जांच करुंगा और इसकी लिखित शिकायत महाप्रबंधक से करके सही काम कराया जाएगा
रोशन उपाध्याय महामंत्री
भारतीय मजदूर संघ बीएमएस
यह काम बिलों में लिया गया है बताइए कहां पर काम गड़बड़ी है तो उसे हम सुधारे
रवि तिवारी सिविल कांट्रेक्टर
काली मंदिर जमुना कोतमा क्षेत्र