जनपद पंचायत अनूपपुर की शह पर फर्जी हाजिरी, अधूरे काम और अनियमित निकासी का खुला खेल


जमुना कोतमा सकोला अनूपपुर
ग्राम पंचायत सकोला में मनरेगा योजनाएं अब जनकल्याण का नहीं, बल्कि जनधन की खुली लूट और जन-शोषण का ज़रिया बन चुकी हैं खेत-तालाब योजना, जो सकोला निवासी रामभजन के नाम स्वीकृत थी उसकी कुल लागत ₹3,37,000 निर्धारित थी इसमें से ₹2,78,000 की निकासी की जा चुकी है जबकि मौके पर कार्य अधूरा पड़ा है मज़दूरों की अनुपस्थिति के बावजूद फर्जी हाजिरी भरकर सरकारी खजाने से मोटी रकम निकाल ली गई — और यह सब जनपद पंचायत अनूपपुर के अधिकारियों की देखरेख में हुआ
फर्जी नामों से भुगतान, मगर अधिकारी मौन!
गांव के जागरूक नागरिक लाल यादव के अनुसार, जॉब कार्ड क्रमांक 312 पर अनार कली और बहादुर के नाम से ₹8,000 से ₹10,000 की राशि निकाल ली गई, जबकि दोनों को कभी कार्यस्थल पर देखा ही नहीं गया इसी तरह जॉब कार्ड 312-A से अन्नु कुमार और 702 नंबर कार्ड से रामनाथ व सातुला के नाम पर भी बिना काम किए भुगतान हो गया
यह तब हो रहा है जब पंचायत और जनपद के जिम्मेदार अफसर हर वर्ष इन नामों को उपस्थिति पंजिका में देखते आ रहे हैं यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि सीधी मिलीभगत और भ्रष्टाचार की साझेदारी को दर्शाता है
घरेलू काम में मजदूरी, भुगतान मनरेगा से!
लाल यादव ने आरोप लगाया कि रमेश विश्वकर्मा जैसे प्रभावशाली व्यक्ति गांव के लोगों से अपने निजी कार्यों में मजदूरी कराते हैं लेकिन भुगतान मनरेगा से करवाते हैं मेहनत किसी और की, लाभ किसी और का — और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है सवाल यह भी है: क्या जनपद अधिकारी इस नाम से डरते हैं या फिर बँटे हुए लाभ में साझेदार हैं?
शोक पिट निर्माण भी बना भ्रष्टाचार का हिस्सा
गुलाब सिंह के कुएं के पास शोक पिट निर्माण का कार्य प्रस्तावित था, मगर खुदाई नाममात्र हुई इसके बावजूद ₹15,004 की लेबर पेमेंट दर्शाकर राशि निकाल ली गई यही हाल नानबाई के नाम पर ₹15,000 की निकासी में भी सामने आया, जहां कार्य न तो पूरा है और न ही गुणवत्ता युक्त
मजदूरों को आधी मजदूरी, बाकी बंदरबांट!
घासी और तम्मा चौधरी के खेत-तालाब कार्य में मज़दूरों को ₹80 और ₹50 प्रतिदिन की दर से मजदूरी दी गई, जबकि मनरेगा में तय मजदूरी इससे कहीं अधिक है यह सीधा शोषण है और कानूनन अपराध भी, परंतु संबंधित अधिकारियों ने आंखें फेर रखी हैं न भोले भाले ग्रामीणों को बंधुआ मजदूर बना कर रख दिए हैं
दिन भर में कितना भी काम कर ले मिलेगा 80 ₹50 दिन भर का इस हिसाब से महीने का हुआ 700 इससे एक गैस सिलेंडर नहीं आए
घर कैसे चलेगा यह कहना गलत ना होगा
रमेश विश्वकर्मा ने मनरेगा को लूट योजना बना दिया जो खुद का जब भरता है
यह भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि मज़दूरों की मेहनत की लूट और उनके अधिकारों की सुनियोजित हत्या है — और यह हत्या सरकारी चुप्पी के कारण संभव हो रही है
सब इंजीनियर श्रीवास्तव पर भी उठ रहे हैं गंभीर सवाल
इस भ्रष्टाचार में सब इंजीनियर श्रीवास्तव की भूमिका भी कटघरे में है जिनके जिम्मे तकनीकी स्वीकृति, मूल्यांकन और कार्य सत्यापन की ज़िम्मेदारी थी, उन्होंने न केवल अधूरे कार्यों को पूर्ण बताया, बल्कि अपनी रिपोर्ट में मजदूरों की उपस्थिति और कार्य गुणवत्ता की झूठी पुष्टि भी की यह न केवल नैतिक अपराध है, बल्कि कानूनी उल्लंघन भी है सवाल यह है कि जब जमीनी सत्यापनकर्ता ही आंख मूंद ले, तो फिर सच्चाई कौन उजागर करेगा?
जनता के टैक्स से वेतन, फिर भी विकास नहीं – भ्रष्टाचार को संरक्षण क्यों?
जनता सवाल पूछ रही है — सब इंजीनियर, एपीओ और सीईओ हर महीने मोटी तनख्वाह किस लिए ले रहे हैं? क्या उनका कार्य गांव का विकास करना है या भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना और उसे अंजाम देने वालों को सुरक्षा देना?
क्या सरकार जनता से टैक्स इसलिए वसूलती है कि अफसर जेबें भरें और गरीबों का हक मारने वालों की ढाल बन जाएं? ऐसे अधिकारी विकास के नहीं, विनाश के वाहक हैं — और जब तक इनकी जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक गांवों में केवल योजनाओं के नाम पर लूट ही चलती रहेगी
अब जनता पूछ रही है — कार्रवाई कब होगी?
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि सकोला पंचायत की सभी मनरेगा योजनाओं की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और मजदूरों को उनकी वास्तविक मजदूरी वापस दिलाई जाए यदि अब भी शासन मौन रहा, तो यह जनता को दिया गया एक स्पष्ट संदेश होगा — कि भ्रष्टाचार ही शासन की नई पहचान बन चुका है अगर कोई कार्य नहीं कर सकते हैं तो सभी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए
जनता का पैसों का बर्बाद नहीं करना चाहिए