मोहर्रम के जुलूस में नन्हें बच्चों ने भी मनाया मातम



मोहरम की दसवी तारीख को सोगवारो ने मातम कर ताजिये को करबला मे दफन किया। मोहरम की दसवी तारीख को मोहम्द इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों की करबला मे शाहदत की याद मे बागपत के पिछोकरा गाँव मे सोगवारो ने मातम किया।पिछोकरा के इमामबाड़ा से चल कर करबला तक सोगवारो ने मोहमद इमाम हुसैन की याद मे -हा हुसैन हम ना हुए की बुलन्द आवाज़ के साथ छुरीयो से मातम किया। दरअसल, बागपत के पिछोकरा गांव में मुहर्रम की 10 तारीख यानी यौमे आशूरा का एहतेमाम बड़ी ही अकीदत और एहतराम के साथ किया गया। दुनियाभर को मोहब्बत, इंसानियत और हक पर कायम रहने का पैगाम देने वाले इमाम हुसैन को गमगीन आंखों से याद कर खिराजे अकीदत पेश की गई। इमाम हुसैन और मैदान-ए-करबला के शहीदों की याद में आलीशान ताजियों और अलम का जुलूस निकाला गया।अकीदतमंद अजादारों ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में मातम किया और मरसिए पढ़े। साथ ही शाहिदाने करबला को खिराजे अकीदत पेश गई। इसमें स्थानीय संगठनों और निवासियों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।जुलूस के दौरान पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के खास इंतजाम किए। मुहर्रम की 10 तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलेहेवसल्लम के नाती इमाम हुसैन की शहादत हुई थी।इमाम हुसैन ने यजीद के झूठ को मानने से किया इंकार मुहर्रम का महीना गम और दुख का है। साथ ही दुनियाभर के लोगों को इंसानियत का पैगाम देता है। देश की तरक्की और सच्चाई पर मर मिटने वालों को हौसला देता है। मुहर्रम का चांद याद दिलाता है कि नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन ने यजीद की झूठ की हामी से इंकार कर दिया था। नवासा-ए-रसूल इमान हुन न पणाद का झू० फा हामी से इंकार कर दिया था। इंसानियत और मुहब्बत का दिया पैगाम,उन्होंने हक की राह में ऐसी कुर्बानी पेश की, जो आज तक इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम देती है। इमाम हुसैन की शहादत ने गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी पर कायम रहने का हौसला और पैगाम दिया।हजरत अली का घर इमाम हुसैन से हुआ गुलजार पांच शाबान चार हिजरी को हजरत अली का घर हजरत इमाम हुसैन अलै. की पैदाइश से गुलजार हुआ। हजरत इमाम हुसैन अलै. की शहादत दस मुहर्रम यानी 680 ईसवी को करबला में हुई। 14 सौ साल गुजरने के बाद भी दुनिया इस अजीम शहादत को याद करती है।