– रिपोर्ट: संतोष चौरसिया






ग्राम पंचायत पायरी क्रमांक 1 में सरकारी योजनाओं को लूट की योजना बना दिया गया है। यहां ऐसा कोई कोना नहीं बचा जहां सरकारी पैसे की लूट की छींटें न पड़ी हों, और ज़मीन पर विकास की एक ईंट भी ढंग से न रखी गई है। हालात ऐसे हैं कि निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही उसका भुगतान हो चुका है और योजनाओं को पूरा दिखाकर फाइलों में स्वच्छता और विकास का नकली चेहरा रच दिया गया है।
स्वच्छ भारत मिशन और ग्रामीण आजीविका मिशन के नाम पर यहां सेग्रीगेशन कार्यशेड का निर्माण होना था। सरकारी दस्तावेजों में इसके लिए ₹4.5 लाख की स्वीकृति दी गई थी, लेकिन सच्चाई यह है कि ₹3.86 लाख से ज़्यादा की राशि पहले ही निकाल ली गई है, जबकि मौके पर एक अधूरी दीवार तक ही निर्माण सीमित है। न छत है, न शेड की संरचना, और न ही मज़दूरों की कोई गतिविधि, फिर भी लेबर पेमेंट तक जारी हो चुका है। कुल मजदूरी भुगतान 53000 रुपए से लगभग 40000 रुपए निकाल लिए गए मतलब कार्य 10 से 12 % हुआ है पेमेंट लगभग पूरी करा दी गई 386000 रुपए
सबसे गंभीर और चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ जब बिलों में ₹91,772 की GI और एल्यूमिनियम शीट, और ₹8,080 की बिटुमेन वॉशर की खरीद दर्शाई गई। लेकिन यह सामग्री न कहीं उपयोग में दिखाई देती है, न ही उसके कोई प्रमाण मौजूद हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि इस महंगी सामग्री को निजी निर्माण में लगाया गया है, शायद किसी अधिकारी के घर की छत पर! यह महज अनुमान नहीं, बल्कि एक सशक्त आरोप है, जो पंचायत की गलियों में अब खुलकर गूंज रहा है।
नेहा सिंह की भूमिका इस पूरे घोटाले में सबसे प्रमुख है। उन पर आरोप है कि उन्होंने किसी भी स्थल पर जाकर निरीक्षण नहीं किया, लेकिन फर्जी मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार कर दी। जिन कागजों में काम ‘पूर्ण’ दर्शाया गया, वे ही अब भ्रष्टाचार की असली स्क्रिप्ट बन चुके हैं। पंचायत की जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या योजनाएं सिर्फ कागजों पर बननी थीं? क्या जमीनी सच्चाई की कोई कीमत नहीं?
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल अब जनपद पंचायत के सीईओ और एसडीओ पर उठ रहा है। जब इतनी बड़ी राशि बिना निर्माण कार्य के निकाल ली गई, तो क्या इन अधिकारियों ने आंखें मूंद रखी थीं? या फिर इस पूरे गोरखधंधे में उनकी भूमिका भी संदिग्ध है? पंचायत की गलियों में यह भी कहा जा रहा है कि जब-जब शिकायतें की गईं, तब-तब इन अधिकारियों ने “जांच होगी” का झुनझुना पकड़ा दिया, लेकिन कार्रवाई के नाम पर आज तक शून्य है।
यही नहीं, नेहा सिंह पहले भी इसी पंचायत में फर्जी निर्माण का खेल खेल चुकी हैं। वर्ष 2020–21 में मनरेगा योजना के तहत अलग-अलग स्थानों पर शौकपिट निर्माण की योजना बनी, जिसमें रामकृष्ण मंदिर के पास, संतोष महरा (टेड़गी टोला), पंचायत भवन के पास और कन्या शाला के पास निर्माण कार्य किया गया था खास बात यह है कि कन्या शाला के पास पहले से ही ₹23,000 की लागत से SBM योजना के तहत पक्का सोकपिट मौजूद था। इसके बावजूद वहां फिर ₹25,000 की लागत से नया शौकपिट में’ बना दिया गया एक जगह कुल 3 शोक पीट, एक मनरेगा का , एक स्वच्छ भारत मिशन का और एक 15 वित्त आयोग का। मतलब जब बना है बार बार बनाने की किया जरूरत यह भ्रष्टाचार करने के लिए किया गया है यह सब तब हुआ जब नेहा सिंह ने स्थल निरीक्षण कर यह रिपोर्ट दर्ज की कि वहां पहले कोई निर्माण नहीं हुआ था। और चार जगह 100000 रुपए धन दुरुपयोग किया गया जहां पहले बना था शोक पिट वह पुनः बना दिया गया यानी पहले से बने निर्माण को ‘अदृश्य’ कर दिखाकर फिर से पैसा निकालने ले गई— यह काम सामान्य लापरवाही नहीं बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार की मिसाल है।
आज ग्रामवासी आक्रोश में हैं। उनका कहना है कि यदि पंचायत स्तर पर ही इस तरह खुला लूटतंत्र चल रहा है, तो बड़े अधिकारियों की क्या भूमिका होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। लोग खुलकर कह रहे हैं कि नेहा सिंह और उनके सहयोगियों ने सरकारी पैसों को अपनी जागीर समझ रखा है, और जिन जिम्मेदार अधिकारियों की ज़िम्मेदारी थी रोकथाम करने की, उन्होंने या तो जानबूझकर मुंह फेर लिया या फिर चुपचाप हिस्सेदारी निभाई।
ग्रामीणों की मांग है कि इस मामले की तत्काल उच्चस्तरीय जांच हो, नेहा सिंह को तत्काल निलंबित किया जाए, और जनपद सीईओ व एसडीओ की भूमिका की स्वतंत्र जांच कराई जाए। इसके साथ ही, सभी निर्माण कार्यों का भौतिक सत्यापन कर फर्जी भुगतान की वसूली की जाए।
यह सिर्फ एक पंचायत की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़ांध की निशानी है। जब तक ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, तब तक योजनाएं केवल कागजों पर ही पूरी होती रहेंगी और भ्रष्टाचार की फसल प्रशासन की चुप्पी में फलती-फूलती रहेगी