SECL जमुना-कोतमा में रात के अंधेरे में डकैती – जब कर्मचारी बंधक बना, ट्रांसफारमर उड़ गया और प्रशासन सोता रहा

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संतोष चौरसिया

जमुना-कोतमा अब “कोयला उत्पादन” के लिए नहीं, डकैती और लापरवाही के लिए जाना जा रहा है यहां अब सिर्फ खनन नहीं हो रहा, बल्कि व्यवस्था का कब्रिस्तान भी तैयार हो चुका है जहां पुलिस का लॉ एंड ऑर्डर दम तोड़ रहा है और प्रबंधन का जमीर पहले ही मर चुका है

बीती रात की वारदात ने साबित कर दिया कि इस क्षेत्र में अपराधी राजा हैं और कर्मचारी उनके सामने निरीह प्रजा SECL के पंखा घर में तैनात राममनोहर, जो सिर्फ ड्यूटी निभा रहा था, उसकी किस्मत में ऐसा मंजर लिखा था जो एक आम आदमी की कल्पना से परे है रात के सन्नाटे में अचानक 15-16 बदमाश ऐसे घुसे जैसे उन्हें किसी सुरक्षा की कोई परवाह ही नहीं चारों ओर से घेरकर कर्मचारी को पटक दिया, मोबाइल छीना और कोठरी में बंद कर दिया — ये कोई चोरी नहीं थी, ये थी पूरी प्लानिंग के साथ की गई डकैती

राममनोहर पूरी रात उस कोठरी में बंद रहा, ना खाना, ना पानी, ना मदद — और उस दौरान बाहर अपराधी ट्रांसफॉर्मर तक उखाड़ ले गए सरकारी संपत्ति लुट गई, सिस्टम लुटता रहा, और पुलिस प्रशासन?
जैसे उनकी आंखों पर सत्ता की पट्टी बंधी हो और कानों में भ्रष्टाचार का रूई ठूंसा हो

सुबह जब कर्मचारी किसी तरह बाहर निकला, तो नजारा ऐसा था जैसे किसी युद्ध के बाद का मैदान — सामान बिखरा पड़ा, ट्रांसफॉर्मर गायब और विश्वास चकनाचूर सवाल यह है कि क्या जमुना-कोतमा क्षेत्र कोई जंगल है? क्या यह कोई नो-मैन्स-लैंड है जहां कोई कानून नहीं चलता?
या फिर अपराधियों और जिम्मेदार अफसरों की कोई “इनसाइड डील” चल रही है?

पुलिस ने घटना के बाद वही पुराना राग अलापा — “जांच चल रही है”, “जल्द कार्रवाई होगी”, “अज्ञात लोगों की तलाश है” लेकिन सवाल यह है कि जब अपराधी योजनाबद्ध तरीके से घुसते हैं, कर्मचारियों को बंधक बनाते हैं, और घंटों लूट मचाते हैं, तब पुलिस कहां होती है? क्या गश्त सिर्फ फाइलों में होती है?

और खान प्रबंधन?
जिनके मातहत ये पूरा सिस्टम चलता है, वो सिर्फ प्रेस नोट में निंदा कर देने से मुक्त हो जाएंगे?
सीसीटीवी हैं तो फुटेज कहां है?
सुरक्षाकर्मी हैं तो सो क्यों रहे थे?
या फिर सब कुछ पहले से तय था?
जब कोई कर्मचारी ड्यूटी पर होता है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? खान प्रबंधन किसके लिए बैठा है? अगर सीसीटीवी हैं, तो फुटेज कहां है? अगर गार्ड हैं, तो वो क्या कर रहे थे? पूरे सिस्टम में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं निकला जो वक्त पर अलर्ट हो, कोई मदद कर सके या खतरे की घंटी बजा सके।

यह घटना केवल एक कर्मचारी पर हमला नहीं है, यह पूरे सरकारी सिस्टम पर हमला है यह उस लोकतंत्र की बेइज्जती है, जिसमें आम कर्मचारी भी सुरक्षित नहीं
जमुना-कोतमा की जनता अब पूछ रही है —हमारा कसूर क्या है?हम डर के साए में क्यों जिएं?और कब तक चुप रहें?”

अगर अब भी कोई कार्रवाई नहीं होती, अगर दोषियों पर कार्यवाही नहीं होती, अगर प्रबंधन और पुलिस दोनों को जवाबदेह नहीं ठहराया गया — तो तय मानिए अगली बार कोई और राममनोहर होगा, कोई और डकैत आएंगे, और पूरा सिस्टम फिर चुपचाप तमाशा देखेगा।

अगर अब भी शासन नहीं जागा,
तो बहुत जल्द यह क्षेत्र “SECL” नहीं,
“”क्रिमिनल एंटरप्राइज लिमिटेड कहलाएगा।

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