जमुना-कोतमा (अनूपपुर) कोयले की काली चमक में डूबे SECL के अफसर अब जनसेवा के नाम पर जनधन की लूट का महा-अध्याय लिख रहे हैं CSR यानी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को इन अफसरों ने “कॉर्पोरेट स्वार्थ राक्षसीकरण” में तब्दील कर दिया है




मोबाइल मेडिकल यूनिट (एम्बुलेंस) के नाम पर जो सेवा जनता को मिलनी थी वो अब कुछ खास जेबों में भर रही है – और जब इस पर सवाल पूछे जाते हैं तो SECL के दफ्तरों में सन्नाटा और अहंकार एक साथ गूंजता है
MP11 TR BO 2432 – यह नंबर अब किसी एम्बुलेंस का नहीं, बल्कि घोटाले का कोड बन चुका है एक ऐसी सेवा जो ज़मीन पर दिखाई नहीं देती,
लेकिन सरकारी रजिस्टरों में चीते जैसी फुर्ती से दौड़ती नज़र आती है
RTI के तहत मांगी गई जानकारी में न कोई मरीज न दवा न डॉक्टर न रूट मैप—तो क्या वाकई कोई सेवा दी जा रही है या सिर्फ पेपरों पर घपला गढ़ा जा रहा है?
SECL के प्रथम सूचना अधिकारी अभय श्रीवास्तव जिनकी नियुक्ति RTI के जवाब देने के लिए हुई थी लेकिन वह अपनी सेवा एरिया वर्कशॉप में दे रहे हैं वो खुद कुर्सी की गुमशुदगी में लिपटे अधिकारी हैं जब देखो, वो ‘ड्यूटी से बाहर’, जब मिलो तो ‘जवाब से बाहर’। RTI के प्रति उनका व्यवहार देखकर लगता है जैसे ये कानून कोयला माफिया के कब्ज़े वाला कागज़ मात्र हो क्या उन्होंने कभी सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 पढ़ा भी है? या फिर उन्हें यही सिखाया गया है कि “जो ना दिखे, वही सही”?
केंद्रीय सूचना आयोग ने साफ कहा है कि CSR जैसी परियोजनाओं में लगे ठेकेदार खर्च भुगतान व काम की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए लेकिन SECL के अफसर RTI एक्ट को “गुप्त सेवा कानून” मानकर चलते हैं
ठेकेदार का नाम छिपाना क्या भ्रष्टाचार का साफ़ इशारा नहीं है? कौन है वो, जो सत्ता की छाया में करोड़ों का खेल खेल रहा है?
असल सवाल है—जब सेवा वाकई हो रही हो तो छुपाने की क्या ज़रूरत? और अगर सेवा नहीं हो रही, तो किसकी जेबें गर्म की जा रही हैं? अगर एम्बुलेंस चल रही होती तो उसके ड्राइवर का नाम होता दवाओं की लिस्ट होती मरीजों की संख्या होती इलाके की रिपोर्ट होती लेकिन यहां तो सेवा नहीं सिर्फ साजिश का संचालन हो रहा है
यह पूरा प्रकरण सिर्फ एक सरकारी लापरवाही नहीं बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार का ‘ब्लूप्रिंट’ है RTI की चिता जलाना सिर्फ एक नागरिक के अधिकार का हनन नहीं यह लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोतने जैसा है
क्या भारत अब उस मोड़ पर आ गया है जहां जनता की आवाज़ सिर्फ तभी सुनी जाती है जब वह चिल्ला-चिल्लाकर कहे, “हमें जवाब चाहिए!
SECL को यह समझना होगा कि वो किसी प्राइवेट खानदानी साम्राज्य की मालिक नहीं बल्कि जनता के पैसों से चल रही एक जवाबदेह संस्था है और जब संस्था जवाबदेही से भागती है तो जनता का गुस्सा सड़कों तक आता है और खबरें अखबारों से कोर्ट तक जाती हैं
अब ये खबर सिर्फ खबर नहीं—जनता का आरोपपत्र है SECL के अफसरों की चुप्पी अब खुद एक गवाही बन चुकी है और RTI की लाश पर जवाबदेही की अग्निपरीक्षा शुरू हो चुकी है
अब जवाब देना ही होगा—नहीं तो अगली RTI अदालत की होगी और अगली रिपोर्ट चार्जशीट!