रिपोर्ट: संतोष चौरसिया


अनूपपुर जिले की जनपद पंचायत अनूपपुर अंतर्गत ग्राम पंचायत सकोला गंगा जल संवर्धन योजना के अंतर्गत जो कार्य होने थे वे अब भ्रष्टाचार और लापरवाही की राष्ट्रीय मिसाल बनते जा रहे हैं योजना का नाम जितना पवित्र था उसका क्रियान्वयन उतना ही अपवित्र और इसकी सबसे खतरनाक परछाईं है सरपंच राधाबाई पूर्व सचिव, जो अब भी रोजगार सहायक के रूप में पंचायत में सक्रिय है और योजनाओं को अपनी जेब की किताब समझकर चला रहा है
गांव में खेत तालाब बनाना एक अत्यंत वैज्ञानिक और स्थायी उपाय माना गया है, जिससे वर्षा जल संचयन, सिंचाई सुविधा और भूजल पुनर्भरण संभव होता है परंतु सकोला में इस वैज्ञानिक प्रक्रिया की पूरी तरह से धज्जियाँ उड़ा दी गईं मनरेगा और गंगा जल योजना के तहत खेत तालाब का न्यूनतम माप 30 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 3 मीटर गहरा होना चाहिए इससे लगभग 1800 से 2000 घन मीटर पानी का संग्रहण संभव होता है लेकिन सकोला में जो तालाब बनाए गए, वे मानक से आधे भी नहीं हैं कुछ तो सिर्फ 1 मीटर की गहराई तक खोदे गए हैं, जो पहली बारिश में ही मिट्टी से भरकर बेकार हो जाते हैं
खेत तालाब के डिजाइन में ढलान का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि पानी बहकर बाहर न जाए और कटाव न हो सामान्यतः 1:1.5 से 1:2 का ढलान अनिवार्य होता है लेकिन यहाँ सीधा गड्ढा खोदकर छोड़ दिया गया, जिससे कटाव तेज़ी से हुआ और मिट्टी बहकर तालाब फिर भर गया जल के प्रवेश और निकास की तकनीकी व्यवस्था किसी भी खेत तालाब का मूलभूत हिस्सा होती है, जिससे पानी का ठहराव और वितरण संतुलित बना रहे सकोला के तालाबों में न इनलेट है, न आउटलेट — यानी यह तालाब नहीं, अस्थायी गड्ढे हैं मिट्टी की परतबंदी और दबाव की प्रक्रिया न की गई, जिससे पानी सीपेज होकर नीचे रिसने लगा परिणामस्वरूप तालाबों में पानी टिकता ही नहीं
खेत तालाबों के किनारे पर सुरक्षा के लिए कटिंग का ढांचा, बाड़बंदी और पैदल चलने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि मवेशी या बच्चे उसमें गिर न सकें सकोला में ये सभी प्रावधान या तो नकली हैं या पूरी तरह अनुपस्थित इन तमाम तकनीकी अनियमितताओं के बीच पूर्व सचिव, जो अब रोजगार सहायक के रूप में पंचायत में कार्यरत हैं, उनका नाम बार-बार सामने आ रहा है ग्रामीणों का आरोप है कि वही सभी कार्यों का आर्डर, निरीक्षण और भुगतान प्रक्रिया को नियंत्रित कर रहा था
सरकार जिस गंगा जल योजना को जल संरक्षण की क्रांतिकारी पहल मान रही थी, सकोला में उसी पर पानी फिरता नजर आ रहा है शासन द्वारा चलाई जा रही यह बहुप्रतीक्षित योजना भ्रष्ट हाथों में पड़कर अपनी आत्मा खो बैठी है जिन खेत तालाबों से किसानों के चेहरे पर हरियाली की उम्मीद जगनी थी, वहाँ अब सिर्फ कीचड़ और मायूसी पसरी है पंचायत सचिवों और इंजीनियरों की मिलीभगत ने ग्रामीण विकास को ठगों का कारोबार बना डाला है योजनाओं के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई और इसका लाभ न किसानों को मिला, न जल को
ग्रामीण अब खुलकर सामने आ गए हैं उनका कहना है कि यह सिर्फ पैसा हड़पने की साज़िश नहीं, बल्कि ग्राम स्तर पर वैज्ञानिक जल संरक्षण के खिलाफ अपराध है गंगा जल योजना की भावना — जल को बचाने की, भविष्य को सुरक्षित करने की — को इस पंचायत ने भूमाफिया-शैली के भ्रष्ट तंत्र में बदल दिया है
लाल यादव के साथ ग्रामीणों की माँग है कि पूर्व सचिव को तत्काल पद से हटाया जाए और निलंबित किया जाए खेत तालाब निर्माण की स्वतंत्र तकनीकी जांच करवाई जाए पूरी योजना का ऑडिट हो और दोषियों पर FIR दर्ज हो
यह खबर केवल एक पंचायत की नहीं है यह एक चेतावनी है — यदि हमने आज आंखें मूँद लीं तो कल हमारी जमीनें सूखेंगी, और साथ ही हमारी उम्मीदें भी सवाल यह है कि क्या सरकार अपनी ही योजनाओं को ज़िंदा रख पाएगी, या यह भी उन फाइलों में दफन हो जाएंगी जिन पर कभी ‘विकास’ लिखा था?