सचिव रमेश विश्वकर्मा और जनपद सीईओ की मिलीभगत से पंचम वित्त आयोग की लूट! ग्राम सकोला बना भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला

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अनूपपुर | विशेष रिपोर्ट

ग्राम पंचायत सकोला, जो जनपद पंचायत अनूपपुर के अधीन आता है, आज विकास के बजाय भ्रष्टाचार की बदबू बिखेर रहा है। गाँववालों के अनुसार, पंचायत सचिव रमेश विश्वकर्मा ने जनपद सीईओ की मौन सहमति के साथ पंचम वित्त आयोग से आवंटित लाखों रुपये का गबन कर डाला। उस राशि का उद्देश्य गाँव में रोशनी, जल, नाली, स्कूल और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना था, परन्तु असल में यह धन निजी जेबों में समा गया।

मध्यप्रदेश पंचायत (सामग्री एवं सामान क्रय) नियम, 1999 के तहत यह आवश्यक था कि ₹500 से ₹15,000 तक की खरीद में तीन कोटेशन अवश्य ली जाएँ और ₹15,000 से अधिक की खरीद में टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाए। इसके अतिरिक्त ग्रामसभा की स्वीकृति, समिति की बैठक, कार्य स्थल का निरीक्षण एवं सत्यापन अनिवार्य थे। परंतु सकोला में इन सभी नियमों का कड़ाई से उल्लंघन करते हुए चुने हुए दुकानदारों से मनमानी दरों पर बिल बनवाए गए। कई मामलों में, जहाँ वस्तुओं का निर्माण या उपलब्धता का संकेत ही नहीं मिला, फिर भी बिल पास कर दिए गए। उदाहरण स्वरूप, टंकी का न बनाना फिर भी बिल पास करना, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि प्रक्रिया की अनदेखी की गई।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन गलत प्रक्रियाओं को देखते हुए जनपद सीईओ ने न तो निरीक्षण किया और न ही किसी प्रकार की कार्रवाई की। इस खामोशी ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का प्रतीक बनकर प्रशासनिक तंत्र पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। ग्रामीणों का कहना है सचिव भ्रष्टाचार का केंद्र है जिसके चलते विकास केवल कागज़ों तक सीमित रह गया और जनता को वास्तविक लाभ नहीं मिला।

गाँव के बुजुर्ग, युवा और महिलाएँ प्रशासनिक अधिकारियों – जिला कलेक्टर, लोकायुक्त एवं मुख्यमंत्री – से तत्काल जांच और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। यह मामला केवल एक गाँव की समस्या न होकर पूरे प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही पर प्रश्न उठाता है। पंचम वित्त आयोग की उक्त राशि का उपयोग निजी संपत्ति बढ़ाने में हो रहा है, जिससे गाँव के लोग अभी भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या केवल एक सचिव ही इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? जनपद सीईओ की मौन सहमति केवल लापरवाही है या इसमें मिलीभगत के ठोस प्रमाण भी छिपे हैं? क्या इसी तरह से पंचम वित्त आयोग की राशि लूटती रहेगी, या शासन-प्रशासन अंततः जागरूक होकर इस भ्रष्टाचार का जड़ से निष्कासन करेगा? प्रशासनिक नियमों की उपेक्षा, मनमानी लेन-देन और संरक्षक की चुप्पी ने इस भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें उगाई हैं।

यह मामला प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी का प्रतीक है। जब तक यह भ्रष्टाचार unchecked रहता है, तब तक विकास की किरण जनता तक पहुँचने में विफल रहेगी। अब समय आ गया है कि उच्चतम अधिकारियों द्वारा इस घटना पर तुरंत और निष्पक्ष जांच की जाए, ताकि भविष्य में इसी प्रकार की घटनाएँ रोकी जा सकें और विकास का असली उद्देश्य – जनता का कल्याण – सुनिश्चित किया जा सके।

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