(विशेष संपादकीय रिपोर्ट)





देश डिजिटल इंडिया के सपने बुन रहा है लेकिन जमुना कॉलरी डाकघर आज भी व्यवस्थाओं की कब्रगाह बना बैठा है
यह वह जगह है जहां सरकारी तंत्र की सांसें फूलती हैं ईमानदारी घुटन में दम तोड़ चुकी है और जनता का धैर्य रोज़ पोस्ट ऑफिस की टूटी कुर्सियों पर बैठकर दम तोड़ता है
डाकघर या दलालघर?
जिस डाकघर में पोस्टल ऑर्डर मिलना चाहिए वहां पोस्टल ऑर्डर की जगह खाली मुठ्ठी मिलती है
चाहे ₹10 का पोस्टल ऑर्डर चाहिए हो या ₹100 का — यहां आपको मिलता है ‘कोरा आश्वासन’ और सलाह — “बाजार से करवा लो!”
डाक टिकट? अगर चाहिए तो पीछे के रास्ते से आइए, जेब में ₹10 रखिए और कालाबाजारी की इस सुनियोजित दुकान से मजबूरी में खरीदिए
सरकारी दफ्तर में ब्लैक मार्केटिंग? हां! और वह भी खुलेआम बेशर्मी से!
₹100 में नाम सुधारने का सौदा!
सरकारी कर्मचारी, जिन्हें सेवा का देवता होना चाहिए था यहां खुलेआम दलाल बन बैठे हैं
नाम सुधारना हो आधार कार्ड से अपडेट कराना हो या कोई अन्य छोटा-मोटा काम — ₹100 खर्चिए, तब जाकर कोई कंप्यूटर ऑपरेटर आपको घास डालेगा
सरकारी दफ्तर में नियम-कानूनों का हँसी-ठिठोली बन गया है और रिश्वत अब मेन्यू कार्ड पर उपलब्ध सेवा बन गई है
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकारी तंत्र ने अब “सेवा शुल्क” को “सेवा उगाही” में बदलने का अनौपचारिक ऐलान कर दिया हो?
पोस्ट मास्टर या ‘ग़ायब मास्टर’?
पोस्ट मास्टर?
उनका तो शायद बस नाम भर है
हकीकत में तो रिश्तेदारों की फौज पोस्ट ऑफिस पर कब्जा जमाए बैठी है
कागज़ी पोस्ट मास्टर कहीं और धूप सेक रहे हैं, और उनकी सीट पर अनधिकृत चेहरे जनता को “सरकारी सेवाओं” का स्वाद चखाते हैं
कानून और नियमों की धज्जियाँ यहां इतनी बार उड़ चुकी हैं कि आसमान अब भी इनकी गंध से बोझिल है
डिजिटल इंडिया का असली चेहरा
जब प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया का सपना दिखाते हैं तो कल्पना यही होती है कि डाकघर जैसे संस्थान आधुनिकता की मिसाल पेश करेंगे
लेकिन जमुना कॉलोनी पोस्ट ऑफिस तो इस सपने का भद्दा मजाक बन चुका है
यहां डिजिटल तकनीक की चमक-दमक तो दूर, बिजली का बल्ब भी शायद रहम खाकर जलता है
घंटों-घंटों लाइन में लगे लोग, बुझे चेहरे, और टूटती उम्मीदें — यही इस डाकघर की पहचान बन चुकी है
स्थानीय जनता का फूटा गुस्सा
“अगर कोयले की नगरी में भी व्यवस्थाएं इतनी बदतर हैं तो फिर देश के दूरदराज इलाकों का क्या हाल होगा?”
यही सवाल हर स्थानीय नागरिक के चेहरे पर लिखा दिखता है
स्थानीय निवासियों ने डाक विभाग के उच्च अधिकारियों से शीघ्र हस्तक्षेप की मांग की है
अब सवाल यह नहीं है कि सुधार कब होंगे, सवाल यह है कि आखिर और कितनी पीढ़ियाँ इस व्यवस्था की लापरवाही की बलि चढ़ेंगी?
क्या कोई सुनेगा इस कराहती व्यवस्था की चीख?
जमुना कॉलरी पोस्ट ऑफिस एक छोटा सा नमूना है उस बड़ी बीमारी का जिसने आज सरकारी कार्यालयों को भीतर से खोखला कर दिया है
अगर अब भी आंखें नहीं खुलीं तो ये अव्यवस्थाएं धीरे-धीरे पूरे सिस्टम को दीमक की तरह चाट जाएंगी
भारत को डिजिटल बनाने से पहले, भारत के सरकारी कार्यालयों को इंसानी बनाने की सख्त जरूरत है
डाक विभाग के उच्चाधिकारियों से हमारी अपेक्षा है कि वे इस पूरे मामले पर न सिर्फ संज्ञान लें, बल्कि ऐसी कड़ी कार्रवाई करें जो एक नजीर बने
वरना ‘डाक’ शब्द से भरोसा और सम्मान दोनों उठ जाएगा — और रह जाएगी सिर्फ एक फाइल, जो वर्षों तक धूल खाती रहेगी!
इनका कहना है
जमुना कॉलोनी पोस्ट ऑफिस में पोस्टल आर्डर और टिकट रहना चाहिए अगर वहां पर नहीं है तो उन्होंने मांगने किया होगा और वह पुष्पराजगढ़ सब डिवीजन में आता है फिर भी मैं उसे दिखावाता हूं अन्य अव्यवस्थाएं भी दूर की जाएगी
आर आर पटेल
इंस्पेक्टर अनूपपुर डाक विभाग
इस संबंध में जब पुष्पेंद्र सिंह डाक अधीक्षक शहडोल के मोबाइल नंबर 758759 8 352 पर संपर्क करने का प्रयास किया गया तो घंटी जाती नहीं उन्होंने फोन उठाना उचित नहीं समझा